Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 227
________________ संस्कृत छाया : परमार्थतश्च दुःखं जायते निजदुष्टकर्मणा जनितम् । भवति खलु निमित्तमात्रं शेषं पुनः बाह्यार्थे || २०५ || गुजराती अर्थ :- खरेखर पोताना दुष्ट कर्मथी ज दुःख उत्पन्न थयेलु होय छे, बाह्य सुख-दुःखादिमां बीजा बधा तो निमित्त मात्र ज होय छे ! हिन्दी अनुवाद :- वास्तव में खुद के दुष्ट कर्म से ही दुःख आता है । बाह्य सुखदुःखादि में अन्य सभी तो निमित्तमात्र ही हैं ( परमार्थ से तो इस संसार में दुःख ही है।) गाहा : ता तेण नहयरेणं न मज्झ परमत्थओ कयं दुक्खं । किंतु निय- कम्म- जणियं एवं भावेसु निय-चित्ते ।। २०६ ।। संस्कृत छाया : ततस्तेन नभश्चरेण न मे परमार्थतः कृतं दुःखम् । किन्तु निजकर्मजनितमेवं भावय निजचित्ते । । २०६ ।। गुजराती अर्थ :- तेथी ने विद्याधरे मने परमार्थथी तो दुःख नथी आप्यु, परंतु मारा पोताना कर्म थी ज थयु छे आ प्रमाणे तुं तारा चित्तमां विचार कर। हिन्दी अनुवाद :- अतः उस विद्याधर ने सही रीति से मुझे दुःख नहीं दिया है किंतु मेरे कर्म से ही हुआ है इस प्रकार तू अपने चित्त में विचार कर । गाहा :- अवि य पत्थरेणाहओ कीवो पत्थरं डक्कुमिच्छई । मिगारिओ सरं पप्प सरुप्पत्तिं विमग्गई ।। २०७ ।। संस्कृत छाया :- अपि च प्रस्तरेणाऽऽहतः क्लीबः प्रस्तरं दंष्टुमिच्छति । मृगारि, शरं प्राप्य शरोत्पत्तिं विमार्गयति ।। २०७ ।। गुजराती अर्थ :- पत्थर वड़े हणायेलो कायर (उपलक्षणथी कुतरो) पत्थर भरवा माटे इच्छे छे, ज्यारे सिंह बाण ने प्राप्त करी ने बाण ना मूल स्थलने जुवे छे। हिन्दी अनुवाद :- पत्थर से मारा गया कायर प्राणी (कुत्ता) पत्थर को ही मारने की चेष्टा करता है और मृगारि (सिंह) आये हुए बाण को देखकर बाण कहाँ से आया ऐसा देखता है। Jain Education International 384 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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