Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 224
________________ गुजराती अर्थ विनीता नगरीमां आवेलो ते पण बीचारो धनपति वाणियो अपूर्व नगरी ने जोई ने आश्चर्यचकित हृदय वालो विचारे छे। हिन्दी अनुवाद :- इधर विनीता नगरी में आया हुआ धनपति वणिक् भी इस अपूर्व नगरी को देखकर विस्मित हृदय से इस प्रकार सोचता है। गाहा : का एसा वर - नयरी कत्थ व सा मेहलावई नयरी । किं केण व अवहरिओ पेच्छामि व सुमिणयं एवं? ।। १९६ । । संस्कृत छाया : का एषा वरनगरी? कुत्र वा सा मेखलावती नगरी । किं केन वा अपहृतः प्रेक्षेवा स्वप्नमेतत् । ।१९६ । । गुजराती अर्थ :- आ श्रेष्ठ नगरी कईं छे? अथवा मेखलावती नगरी क्या छे? अथवा शु कोई ना वड़े हुं हरायो छु के आ स्वप्न जोइ रह्योछु । हिन्दी अनुवाद :- यह उत्तम नगरी कौन सी है ? अथवा मेखलावती नगरी कहाँ है ? अथवा क्या किसी ने मुझे उठाकर यहाँ रखा है ? या यह कोई स्वप्न देख रहा हूँ ? गाहा : : एवं विचिंतयंतो बाहिं नयरीए जाव परिभमइ । तावय पवरुज्जाणे समोसढो केवली दिट्ठो । । १९७ ।। सिरि-उसहनाह - जिणवर- वंस पसूओ तिलोय - विक्खाओ । नामेण दंडविरओ राय-1 -रिसी मुणि गण समेओ । । १९८ । । संस्कृत छाया : एवं विचिन्तयन् बहि-र्नगर्यां यावत् परिभ्रमति । तावच्च प्रवरोद्याने समवसृतः केवली दृष्टः । । १९७।। श्रीऋषभनाथ-जिनवरवंश- प्रसूतस्त्रिलोकविख्यातः । नाम्ना दण्डवीर्यो राजर्षि मुनिगणसमेतः । ।१९८।। युग्मम् गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे विचारतो नगरीनी बहार ज्यां सुधी भमे छे त्यां सुधीमां श्रेष्ठ उद्यानमां देवो वडे रचायेला त्रण गढ़वाला समवसरणमां । श्री ऋषभनाथ जिनवरना वंशमां उत्पन्न थयेला त्रण लोक मां विख्यात, बड़े राजर्षि दण्डवीर्य नामना केवली भगवंतने मुनिगण साथै जोया । हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार सोचता हुआ जब तक नगर के बाहर घूमता है तब तक उत्तम उद्यान में देवों द्वारा निर्मित तीन गढ़वाले समवसरण में विराजित श्री ऋषभदेव प्रभु के वंश परंपरा में आए हुए, तीन लोक में विख्यात, मुनिगण से युक्त राजर्षि दण्डवीर्य केवली भगवंत दृष्टिपथ में आये । Jain Education International 381 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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