Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 223
________________ गुजराती अर्थ :- सौभाग्यना भण्डार जेवी आ स्त्री प्राप्त थाय तो मारे विद्याधीओ के अन्य युवतिओ के नुं काम? हिन्दी अनुवाद :- सौभाग्य के भंडार जैसी यह युवती मुझे प्राप्त हो जाय तो विद्याधरिओं से अथवा अन्य युवतियों से मुझे भी क्या काम? गाहा : एवं विचिंतिऊणं अवहरिओ घणवई इमेणं तु । नेऊण भरह-खित्ते मुक्को उ विणीय-नयरीए ।।१९३।। संस्कृत छाया : एवं विचिन्त्य अपहृतो धनपतिरनेन तु । नीत्वा भरतक्षेत्रे मुक्तस्तु विनीतानगर्याम् ।।१९३।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे विचारी ने आना वड़े अपहरण करायेलो धनपति भरत क्षेत्रमा विनीता नगरीमा लई जई ने मुकवामां आव्यो। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार सोचकर इसने भरतक्षेत्र के विनीता नगरी में अपहरण किये धनपति को ले जाकर छोड़ दिया। गाहा : पच्छाइय निय-रूवं धणवइ-रूवं विहित्तु विज्जाए । वसुमइ-सुरयासत्तो एसो सो चिट्ठई इत्थ ।।१९४।। संस्कृत छाया : प्रच्छादितो निजरूपं धनपतिरूपं विधाय विद्यया । वसुमती-सुरतासक्त एष सा तिष्ठत्यत्र ||१९४।। गुजराती अर्थ :- विद्या वड़े ढांकेला पोताना रूपवाळो, धनपतिनुं रूप करीने वसुमती साथे रति क्रीडामां आसक्त ते आ पुरुष अहीं रहेलो छ। हिन्दी अनुवाद :- विद्या द्वारा अपने रूप को छुपाकर, धनपति के रूप को लेकर के वसुमति के साथ रतिक्रीड़ा में आसक्त यह पुरुष यहाँ है। गाहा : सोवि हु धणवइ-वणिओ विणीय-नयरीए पाविओ वरओ। दट्टुं अउव्व-नयरिं विम्हिय-हियओ विचिंतेइ ।। १९५।। संस्कृत छाया : सोऽपि खलु धनपति-वणिजो विनीतनगर्यां प्राप्तो वराकः। दृष्ट्वाऽपूर्व-नगरी विस्मित-हृदयो विचिन्तयति ।।१९५।। 380 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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