Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 216
________________ संस्कृत छाया :कोऽसि त्वं? कस्य सूतः? कस्मात गृहे मे आगतः पाप!? | हा! धृष्ट! किं निमित्त अम्बेति मां समुल्लपसि? ||१७०।। गुजराती अर्थ :- तुं कोण छे? कोनो पुत्र छे? शा माटे मारा घरे आवेलो छे? अरें। लुच्चा! तुं क्या कारणे मने 'माता' ए प्रमाणे कहे छे? हिन्दी अनुवाद :- हे! पापी! तू कौन है? किसका पुत्र है? किस हेतु से मेरे घर आया है? अरे! धृष्ट पुरुष! और मुझे माता कहकर क्यूं बुलाता है? गाहा : कीस मह पुत्त-सेज्जाए इत्थ सुत्तोसि नट्ठ-मज्जाय!। कत्थ कओ मे पुत्तो धणवइ-नामो हयास! तुमे?।।१७१।। संस्कृत छाया : कस्माद् मे पुत्र शय्यायामत्र सुप्तोऽसि नष्टमर्याद!।। क्व कुतो मे पुत्रो धनपलिनामा हताश! त्वया? ||१७१।। गुजराती अर्थ :- मारा पुत्रनी पथारीमां हे निर्लज्ज! तुं केम सूतो छे? मारा पुत्र धनपतिने ते शुं कर्यु छे? हिन्दी अनुवाद :- हे निर्लज्ज! मेरे पुत्र की शय्या में तूं क्यूं सोया है? और मेरे पुत्र धनपति को तूने क्या किया है? गाहा: एवं च तीइ निठुर-वयणाणि निसम्म-विम्हिओ चित्ते । सो पुरिसो निय-देहं पुणो पुणो अह पुलोएइ ॥१७२।। संस्कृत छाया: एवं च तस्या निष्ठुर-वचनानि निशम्य विस्मितश्चित्ते । स पुरुषो निजदेहं पुनः पुनरथ पश्यलि ।।१७२।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे तेणीना निष्ठुर-वचनोने सांभळीने चित्तमा विस्मित थयेलो ते पुरुष हवे पोताना देह ने बारंबार जोवा लाग्यो। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार माता के निष्ठुर वचन सुनकर चित्त में विस्मित हुआ वह पुरुष बार-बार अपने देह को देखने लगा। गाहा : आलोइऊण सुइरं निय-देहं जाव सामल-मुहो सो । उप्पइय-मणो ताहे आलोयइ नह-यलं सहसा ।।१७३।। संस्कृत छाया : आलोक्य सुचिरं निजदेहं यावत् श्यामलमुखः सः। उत्पतित-मनास्तदा आलोकयति नभस्तलं सहसा ||१७३।। 373 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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