Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 204
________________ गुजराती अर्थ हवे त्यारे अर्धरात्रिना समये दुंदुभिना शब्दने सांभळीने जागेली एवी में दिव्यविमानोथी सांकडो बनेल गगन मार्ग जोयो! हिन्दी अनुवाद :- तब अर्धरात्रि बीतने पर दुंदुभि की ध्वनि को सुनकर जागृत हुई मैंने दिव्य विमानों से संकुचित बने गगनमार्ग को देखा। -- गाहा : - दट्ठूण देव - निवहं उज्जोइय- गयण मंडलं तत्थ । सुर-सुंदरि - गण - सहियं चिंता मे एरिसा जाया । । १३० ।। संस्कृत छाया : दृष्टवा देवनिवहमुद्योतित-गगनमण्डलं तत्र । सुरसुन्दरीगणसहितं चिन्ता ममेदृशा जाता ।। १३०|| गुजराती अर्थ :- त्यां गगनमण्डलने पण झगमगावनार, देवांगनाओ साथनी देवताना समूह जोई मने आवा प्रकारनो विचार आव्यो । हिन्दी अनुवाद :- वहाँ गगनमण्डल को भी जगमगाता एवं देवांगना से युक्त देवगण को देखकर मुझे ऐसा विचार आया। गाहा : कत्थेरिसाई मन्ने दिव्व-विमाणाइं दिट्ठ-पुव्वाइं । एवंविहाय देवा देवीओ कत्थ दिट्ठाओ । । १३१ । । संस्कृत छाया : कुत्रेदृक्षाणि मन्ये दिव्यविमानानि दृष्टपूर्वाणि । एवंविधाश्च देवा देव्यः कुत्र दृष्टाः २ ।।१३१।। गुजराती अर्थ :- मने लागे छे, के आवा प्रकारना दिव्यविमानो पहेला क्यांक जोया छे? अने आवा प्रकारना देव-देवीओं क्यांक जोया छे? हिन्दी अनुवाद :- मुझे लगता है कि इस प्रकार के दिव्य विमान मैंने पहले कभी कहीं देखे हैं तथा इस प्रकार के देव-देवी भी कहीं देखे हैं। गाहा : प्रियंगुमंजरीने जातिस्मरण एवं विचिंतयंती पिय- सहि! मुच्छा-वसं अहं पत्ता । मुच्छा-विरमे तत्तो जाई - सरणं समुप्पन्नं ।। १३२ ।। संस्कृत छाया : एवं विचिन्तयन्ती प्रिय सखे! मूर्च्छावश-महं प्राप्ता । मूर्च्छा-विर ततो जाति-स्मरणं समुत्पन्नम् || १३२ || गुजराती अर्थ :- हे प्रियसखी! आ प्रमाणे विचार करती हुं मूर्च्छा पामी, त्यार पछी भानमां आवी त्यारे जातिस्मरण उत्पन्न थयु ! हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार सोचते-सोचते मुझे मूर्च्छा आ गई। तत्पश्चात् हे ! प्रिय सखी! मूर्च्छा दूर होने पर जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। Jain Education International 361 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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