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संस्कृत छाया :
ततो द्वावपि जनाववतीर्णौ वने रम्ये ।
शीतल जल प्रतिपूर्णमथ दृष्टं तत्र निर्झरणम् ।।६४।। गुजराती अर्थ :- व्यार पछी ते बल्ले जणा पण सुंदर वनमां नीचे आव्या, अने त्यां शीतलजल थी भरेलु झरणु जोयुं। हिन्दी अनुवाद :- उसके बाद दोनों ही सुंदर वन निकुंज में नीचे गए और वहाँ पर शीतल जल से भरे झरने को देखा।
गाहा :
पाऊण जलं अह सा पत्तल-तरु- छाहियाए उवविट्ठा।
काउं सरीर-चिंतं अहमवि तत्थेव आयाओ।।६५।। संस्कृत छाया :
पीत्वा जलमथ सा पत्रल-तरुच्छायायामुपविष्टा ।
कृत्वा शरीरचिन्तामहमपि तत्रैवाऽऽयातः।।६५|| गुजराती अर्थ :- ते युवती पाणी पीने ने घटादार वृक्षनी छायामां बेठी। अने हुँ पण शारीरिक चिन्ता दूर करीने त्यां ज आव्यो। हिन्दी अनुवाद :- वह युवती पानी को पी के घने पत्तों से युक्त वृक्ष की छाया में बैठी तथा मैं भी शारीरिक चिन्ता से निवृत्त होकर वहां आया!
गाहा :
भो सुप्पइट्ठ! एवं खणंतरं वीसमामि जा तत्थ ।
ताव य निसुओ सद्दो आसन्ने केलि-गेहम्मि ।।६६।। संस्कृत छाया :
भोः! सुप्रतिष्ठ! एवं क्षणान्तरं विश्राम्यामि यावत्तत्र ।
तावच्च नि:श्रुतश्शब्द आसन्ने कदलिगृहे ||६६|| गुजराती अर्थ :- हे सुप्रतिष्ठ! आ रीते हजी एक क्षण विसामो को त्यां ज समीपवर्ति कदलीगृहमां शब्द संभळायो। हिन्दी अनुवाद :- हे सुप्रतिष्ठ! इस तरह से एक क्षण विश्राम किया, उतनी देर में समीपवर्ती केले के बगीचे में से आवाज सुनाई दी। गाहा :
जाया सत्थ-सरीरा सुंदरि! वच्चामु, इण्हि निय- ठाणं। एयं सदं सोउं एस विगप्पो महुप्पन्नो ।।६७।।
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