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उस दिन जब तुम्हारे साथ विविध प्रकार की क्रीड़ा कर घर लौटी तो महल की छत पर स्थित पलंग पर सो गयी। अर्द्धरात्रि बीतने पर दुंदुभि की ध्वनि को सुनकर जाग्रत हुई मैंने गगन मार्ग पर दिव्य विमानों में विचरण करते हुए देव-देवियों को देखा। तभी मुझे मूर्छा आ गयी और मूर्छा दूर होने पर मुझे दो भवों का जातिस्मरण ज्ञान हुआ। तू ध्यान से सुन।
जम्बूद्वीप के मेरुगिरि के उत्तर में श्रेष्ठ ऐरावत नाम का क्षेत्र है। उसके मध्यखण्ड के आर्य क्षेत्र में सुप्रतिष्ठ नामक एक नगर था जिसमें हरदित्त नामक एक श्रेष्ठि अपनी विनयवती नामक पत्नी के साथ रहता था। उसका श्रेष्ठ वसुदत्त नामक एक पुत्र था। इसके अतिरिक्त विनयवती को तीन रूपवती सुलोचना, अनंगवती तथा वसुमती नाम की पुत्रियां भी थीं। सुलोचना का विवाह मेखलावती पुरी के सागरदत्त के पुत्र सुबन्ध नामक वणिक पुत्र से हुआ। अनंगवती, विजयवती नगरी के धनभूति सार्थवाह के पुत्र धनवाहन के साथ व्याही गयी तथा वसुमती का विवाह मेखलावती नगरी के समुद्रदत्त के पुत्र धनपति के साथ हुआ।
एक दिन धनपति वणिक अपनी पत्नी वसुमति के साथ महल की छत पर सोया था। वसुमति निद्राक्षय होने के कारण रात्रि के पिछले प्रहर में जाग गयी। अपनी शय्या में पर पुरुष को सोए हुए देख वह डर कर कांपने लगी। सोचने लगी यह पुरुष कैसे यहाँ आया। इसने मेरे पति को मार डाला या मुझे भ्रम के कारण मेरा पति मुझे मेरा पति नहीं लग रहा है? मुझे तुरन्त अपनी सासू माँ से यथास्थिति का ज्ञान करना चाहिए। वह अपनी सुदर्शना सासू के पास आई और उनसे सारी बात बता दी। सुदर्शना ने कहा कि यह तुम्हारा भ्रम प्रतीत होता है क्योंकि यहाँ अन्य पुरुष का आना सम्भव नहीं है। किन्तु वसुमति के आग्रह पर जब वह ऊपर जा कर देखी तो उसे स्पष्ट हुआ कि वह उसका पुत्र नहीं है और उसने उसे चोर समझकर पकड़ने के लिए जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। समुद्रगुप्त शैय्या में से उठा और कहने लगा हे! माता किसने चोरी की है? सुदर्शना ने उसे अपने को माता कहने पर आपत्ति की और पूछा कि तुमने हमारे पुत्र धनपति को कहाँ छुपा दिया है। माँ के निष्ठुर वचन सुन विस्मित हुआ वह आकाश की तरफ देखता हुआ बार-बार अपना शरीर देखकर कुछ बड़बड़ाने लगा। इतने में और भी लोग आ गए। तभी बाजुबंध, हार, कड़ा आदि आभूषणों से शोभित, सुंदर शरीर वाला देदीप्यमान एक देव प्रकट हुआ। उस देव ने बताया कि यह बहुत सारी विद्याओं को सिद्ध करने वाला पापी सुमंगल नामक विद्याधर है। वह यौवन से मदोन्मत हो एक बार इस नगरी में आया। उधर वसुमति तुरन्त ही छत पर स्नान करके आयी थी और इसने उसे देख लिया।
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