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संस्कृत छाया :
भोः! सुप्रतिष्ठ! एवं भणित्वाऽवलम्ब्य मम कण्ठे ।
गुरूदुःख-निर्भरया रूदितमथ तया बालया ||५२।। गुजराती अर्थ :- हे सुप्रतिष्ठ! हवे आ प्रमाणे कहिने मने गले वळगी ने भारे दुःख थी भरायेली ते बाला रड़वा लागी। हिन्दी अनुवाद : - हे सुप्रतिष्ठ! इस प्रकार कहकर वह बाला मेरे गले लगकर अति दुःख से भरी हुई रोने लगी। गाहा :
तत्तो य मए भणियं सुंदरि! किं सोयमसरिसं वहसि? ।
लद्धं जं लहिअव्वं इण्हिं जं होउ तं होउ ।।५३।। संस्कृत छाया :
ततश्च मया भणितं सुन्दरि! किं शोचमसदृक्षं वहसि?।
लब्धं यद् लब्धव्यमिदानीं यद् भवतु तद् भवतु ।।५३।। गुजराती अर्थ :- आथी में कहो, हे सुन्दरी! शा कारणे विशेष शोक ने धारण करे छे। जे मेळववानु हतुं मळी गयु हवे जे थवानु होय ते थाओ। हिन्दी अनुवाद :- अत: मैंने कहा - "हे सुन्दरी! किस हेतु से विशेष शोक को धारण करती हो? जो मिलना था वह मिल गया, अब जो होने वाला है वह होगा।" गाहा :
तुह संगम-रहियाणं मरणं जइ होज्ज, होज्ज ता दुक्खं ।
इण्हि पुणम्ह सुंदरि! मरणेवि हु नत्थि दुक्खंति ।।५४।। संस्कृत छाया :
तव सङ्गमरहितानां मरणं यदि भवेत् भवेत् तर्हि दुःखम्।
इदानीं पुन रावयोः सुन्दरि! मरणेऽपि खलु नास्ति दुःखमिति।।५४।। गुजराती अर्थ :- जो तारा सङ्ग थी रहित माल मरण थात तो मने दुःख थात, वळी हे सुन्दरी! अन्यारे तो आपणा बल्लेना मरण मा पण दुःख नथी! हिन्दी अनुवाद :- यदि तुम्हारे (सङ्ग) बिना मेरी मृत्यु होती तो मुझे दु:ख होता, अभी तो हे सुन्दरी! दोनों की मृत्यु में भी मुझे दुःख नहीं है! गाहा :- किंच
एसो अचिंतिओवि हु जह जाओ संगमो सह तुमाए। तह चेव मा कयावि हु अन्नं पि हु सोहणं होज्जा ।। ५५।।
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