Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ संस्कृत छाया : निद्राविगमे च मया उक्तं सुतनो! व्रजाव इदानीम् । ईदृक्ष-माचर्य न खलु युक्त-मासितुमत्र ।।४६|| गुजराती अर्थ :- निद्रा दूर थये छते में तेणीने कहयुं हे सुंदरी! आपणे अत्यारे अहीं थी जईए, आवा प्रकारचें आचरण की ने अहीं रहेवु योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद :- जागने पर मैंने उससे कहा, हे सुतनो। अब यहाँ से अन्य स्थान पर जाना चाहिए। इस प्रकार का आचरण करके यहाँ रहना उचित नहीं है। गाहा : दीहं नीससिएणं अह भणियं तीइ हियय-दइयाए। हा अज्ज- उत्त! जुत्तं कम-पत्तं आसि मह मरणं ।। ४७।। संस्कृत छाया : दीर्घं निःश्वस्याऽथ भणितं तया हृदयदयितया । हा! आर्यपुत्र! युक्तं क्रमप्राप्तमासीद् मे मरणम् ।। ४७।। गुजराती अर्थ :- लांबो निःश्वास नाखीने ते हृदयवल्लभाए कां। हे आर्यपुत्र! आनाथी तो परंपरा प्राप्त थयेलु मारू मरण ज योग्य हतु। हिन्दी अनुवाद :- लंबा निःश्वास लेकर उस हृदयवल्लभा ने कहा - 'हे आर्यपुत्र! इससे तो मेरी मृत्यु होना ही ठीक था। गाहा : मज्झ निमित्ते पाविसि सामिय! जं गरुय-आवई इण्डिं । नहवाहणो पयंडो विज्जा-बल-दप्पिओ तह य ।।४८।। संस्कृत छाया : मम निमित्ते प्राप्नोषि स्वामिन् यद् गुर्वाप दमिदानीम् । नभोवाहनः प्रचण्डो विद्याबलदर्पितस्तथा च ।४८।। गुजराती अर्थ :- कारण के हे स्वामिन् ! मारा निमित्ते आपने अत्यारे मोटी आपत्ती आवशे अने वली नभोवाहन राजा विद्या अने बल थी गर्विष्ठ प्रचण्ड राजा छ। हिन्दी अनुवाद :- क्योंकि हे स्वामिन् ! मेरी वजह से आपको अभी बड़ी परेशानियां आयेंगी, क्योंकि नभोवाहन राजा विद्या और बल से गर्विष्ठ बलवान राजा है। गाहा : नासंताणवि अम्हं न नाह ! सरणं तु विज्जए किंचि । ता तुह वइरिणि-रूवा जाया परमत्थओ अहयं ।। ४९।। 335 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242