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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर २००८
हो तथापि उसे घी का घड़ा कहना द्रव्य निक्षेप है। इसी प्रकार भूतकाल में जो न्यायाधीश था, अब निवृत्त हो चुका है उसे अब भी न्यायाधीश कहना अथवा भावी राजा को वर्तमान में राजा कहना द्रव्य निक्षेप है।
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द्रव्य निक्षेप का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है । उसमें ऐसे अनेक वाणी प्रयोग संभव हैं जैसे भावी में राजा होने वाले को राजा कहा जाता है। राजा के मृत देह को भी राजा कहा जाता है। इस प्रकार भाव - शून्यता, वर्तमान पर्याय की शून्यता के उपरांत भी जो वर्तमान पर्याय से पहचाना जाता है, यही इसमें द्रव्यता का आरोप है, इसलिए इसे द्रव्य निक्षेप कहा जाता है।
४. भाव निक्षेप : जैन तर्कभाषा में यशोविजय जी ने भाव निक्षेप को परिभाषित करते हुए कहा है-वक्ता जिस क्रिया की विवक्षा करता है उसी अनुभूति से युक्त जो स्वत्व निक्षिप्त किया जाता है वह भाव निक्षेप है।" जैसे 'इन्द्र' आदि की क्रिया में परिणत होने वाला भावेन्द्र है। निष्कर्षतः शब्द के द्वारा वर्तमान पर्याययुक्त वस्तु का ग्रहण होना 'भाव निक्षेप' है।
निक्षेप प्रत्येक घटित वस्तु पर किये जा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि किसी पर घटित हो और किसी पर नहीं । यद्यपि इनकी संख्या कहीं अधिक और कहीं न्यून हो सकती है तद्यपि कम से कम चार निक्षेप तो सर्वत्र ही घटित होते हैं। जितने भी पदार्थ हैं वे चतुष्पर्यायात्मक होते हैं। कोई भी वस्तु केवल नाममय, स्थापनामय, द्रव्यात्मक अथवा केवल भावात्मक नहीं होती । नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव - ये चारों एक ही वस्तु के अंग माने जाते हैं। किसी भी वस्तु की जो संज्ञा है वह उसका नाम निक्षेप है, उसकी आकृति स्थापना निक्षेप है, उस वस्तु का मूल द्रव्य द्रव्य निक्षेप है और उसकी वर्तमान पर्याय भाव निक्षेप है। यह अभेदवृत्तिक - निक्षेप का स्वरूप है।
निक्षेप पद्धति की उपयोगिता :
निक्षेप में शब्द और उसके वाच्य की मधुर संगति है । निक्षेप को बिना समझे भाषा के वास्तविक अर्थ को नहीं समझा जा सकता । अर्थसूचक शब्द के पीछे अर्थ की स्थिति को स्पष्ट करने वाला जो विशेषण लगता है यही निक्षेप पद्धति की विशेषता है। दूसरे शब्दों में 'सविशेषण भाषा प्रयोग' भी इसको कह सकते हैं। अर्थ के अनुरूप शब्द रचना या शब्द प्रयोग का ज्ञान सत्य वाणी का महान् तत्त्व है। चाहे विशेषण शब्द का प्रयोग न भी किया जाये तथापि वह विशेषण अन्तर्निहित अवश्य रहता है। यदि अपेक्षा दृष्टि का ध्यान नहीं रखा जायेगा तो कदम-कदम पर असत्य भाषा का प्रसंग उपस्थित होगा। जो किसी समय न्यायाधीश था वह आज भी न्यायाधीश है - यह मिथ्या हो सकता
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