________________
जैन दर्शन में निक्षेपवाद : एक विश्लेषण : ८३
है और भ्रमपूर्ण भी। एतदर्थनिक्षेप दृष्टि को विस्मृत नहीं करना चाहिए, यह विधि जितनी व्यावहारिक है उतनी ही गांभीर्य है। संदर्भ : १. णिच्छए पिण्णए खिवदि त्ति णिक्खेओ। धवला षटखण्डागम, पु० १,
पृ० १० न्यसनं न्यस्यत इति वा निक्षेप इत्यर्थः। - तत्त्वार्थवार्तिक, सम्पा०न्यायाचार्य महेन्द्र कुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, पृ०-२८ प्रकरणादिवशेनाप्रतित्यादिवच्छेदकयथास्थान - विनियोगायशब्दार्थ-रचनाविशेषा निःक्षेपाः। यशोविजय कृत जैन तर्कभाषा, अनु० पं० शोभाचन्द्र
भारिल्ल, पृ० ६८ ४. अप्रस्तुतार्थापाकरणात् प्रस्तुतार्थव्याकरणाच्च निक्षेप : फलवान्।
लघीयस्त्रय,७/२ मुनि नथमल, जैन दर्शन में प्रमाण-मीमांसा, आदर्श साहित्य संघ, चुरु (राज०), पृ० १८२
वही ७. नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्नयासः। तत्त्वार्थसूत्र, २/५ ८. तत्र प्रकृतार्थनिरपेक्षा नामार्थान्तरपरिणतिर्नामनिःक्षेपः। जैन तर्कभाषा,
यशोविजय, अनु० पं० शोभाचन्द्र भारिल्ल, पृ० ६८ ९. मुनि नथमल, जैन दर्शन में प्रमाण-मीमांसा, पृ० १८३ १०. यत्तु वस्तु तदर्थवियुक्तं तदभिप्रायेणस्थाप्यते, स स्थापना नि:क्षेपः।
जैन तर्कभाषा, हिन्दी विवेचना- पं० प्रवर ईश्वरचन्द्र शर्मा, निक्षेप
परिच्छेद, पृ० ९ ११. भूतस्य भाविनो वा भावस्य कारणं यन्निक्षिप्यते स द्रव्य निःक्षेपः। वही,
पृ० ११ १२. विवक्षितक्रियानुभूतिविशिष्टं स्वतत्वं यन्निक्षिप्यते स भाव नि:क्षेपः। वही,
पृ० १८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org