Book Title: Sramana 2007 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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जैन परम्परा में मंत्र-तंत्र : ११
(च) कसायपाहुड, जयधवलाटीका, भाग-१, पृ० १४४ (प्रथम संस्करण) (छ) हरिवंशपुराण, जिनसेन - १०/११३-११४.
२. (क) चूलिया पंचविहा- जलगया थलगया मायागया रूवगया आगासगया चेदि । तत्थ जलगया दो - कोडि - णव - लक्ख- एऊण णवुइ- सहस्स - बे-सद- - पदेहि २०९८९२०० जलगमण जलत्थंभण-कारण-मंत-तंत-तवच्छराणि वण्णेदि । थलगया णाम तेत्तिएहि चेव-पदेहि २०९८९२०० भूमि-गमण-कारण-मंततंत तवच्छरणाणि वत्थु-विज्जं भूमि-संबंधमण्णं पि सुहासुह - कारणं वण्णेदि । मायागया तेत्तिएहि चेय पदेहि २०९८९२०० इंद-जालं वण्णेदि । रूवगया तेत्तिएहि चेय पदेहि २०९८९२०० सीह हय- हरिणादि- रूवायारेण परिणमणदु-मंत-तंत- तवच्छरणाणि चित्त-कट्ठे-लेप्प-लेण-कम्मादि-लक्खणं च वण्णेदि । आयासगया णाम तेत्तिएहि चेय पदेहि २०९८९२०० आगास-गमण- णिमित्तमंत-तंत-तवच्छरणाणि वण्णेदि । षट्खण्डागम, पुस्तक - १, १/१/२, पृ० ११४. (ख) कसायपाहुड, भाग-१, पृ० १३९.
(ग) गोम्मटसार (जीवकाण्ड), जी०त० प्रदी० गाथा - ३६२, पृ० ६०२ (ज्ञानपीठ
संस्करण)
(घ) अंगपण्णत्ति, शुभचन्द्र, ३ / १-९
३. शास्त्री, डॉ० नेमिचन्द्र, प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, तारा पब्लिकेशन्स, वाराणसी, पृ० २५०.
४. शास्त्री, डॉ० नेमिचन्द्र, मंगलमंत्र णमोकार : एक अनुचिन्तन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, पृ० १३२.
५. कापड़िया, एच० आर०, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग-३, प्रका० मुक्तिकमल जैन मोहनमाला, बड़ौदा, सन् १९७०, पृ० २२४.
६. विद्याप्रवादपूर्वस्य तृतीयप्राभृतादयम् ।
उद्धृतः कर्मघाताय श्रीवीरस्वामिसूरिभिः ॥ १/८
७. यद् यद् विचिन्त्यते कार्यं मनुजैरैहलोकिकम् । तत् तत् सम्पद्यते सद्यो मंत्रस्यास्य प्रभावतः || ३/४०
८. अधिकार - ५, श्लोक - १७.
९. अष्टाशतस्यैकषष्टि (८६१) प्रमाणशकवत्सरेष्वतीतेषु । श्रीमान्यखेटकटके पर्वण्यक्ष (य) तृतीयायाम् ॥
ग्रन्थ प्रशस्ति अनेकान्त, वर्ष १, पृ० ४३१ पर उद्धृत।
१०. कापड़िया, एच०आर०, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग-३, पृ०० २२८.

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