Book Title: Siddha Saraswat
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 11
________________ में चर्चा की तो सभी ने हार्दिक अभिव्यक्ति प्रदान की कि ऐसे श्रेष्ठ विद्वान् को अवश्य अभिनन्दन ग्रन्थ से सम्मानित होना चाहिए। विद्वानों की भावनाओं को पढ़कर मैंने अपने वीतरागवाणी ट्रस्ट रजिस्टर्ड के ट्रस्टियों की मीटिंग में ऐसे श्रेष्ठ विद्वान् के सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशक का प्रस्ताव रखा तो सभी ने एकमत से स्वीकृति प्रदान की जिसे मैंने वीतरागवाणी मासिक पत्रिका में प्रकाशित कर देश के यशस्वी विद्वानों, साहित्य मनीषियों, कविगणों एवं प्रतिष्ठित जैनों से साहित्यिक सहयोग देने की अपील की। मुझे लिखते हुए अपार प्रसन्नता है कि मात्र 4 माह में मुझे इतनी सामग्री प्राप्त हो गई कि मैं सहजता से डॉ. साहब का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने में सफल हो सका। यह डॉ. साहब की समाज एवं विद्वत् वर्ग में उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है। डॉ. श्री सुदर्शन लाल जैन जी के सम्मान में प्रकाशित हो रहे इस अभिनन्दन ग्रन्थ से डॉ. सुदर्शन लाल जी का मात्र अभिनन्दन ही नहीं हो रहा अपितु समाज, धर्म और जैन संस्कृति का सम्मान भी हो रहा है। इस अभिनन्दित के अभिनन्दन से स्वयं अपने आप मैं अभिनंदित हो गया। ग्रन्थ सम्पादन के कार्य में हमारे सम्पादक मण्डल के श्रेष्ठ सुयोग्य विद्वानों का हमें पर्याप्त सुझाव और सहयोग मिला सम्पादन का कार्य बड़ा दुरूह और श्रमसाध्य होता है। जिससे हमारे साथी सम्पादकों ने ग्रन्थ की सर्वांगीण सौरभता को महकाया है। ग्रन्थ की उपयोगिता की दृष्टि से इसकी सामग्री चयन करने में जो भी महत्त्वपूर्ण अच्छाई है उस का श्रेय हमारे सम्पादक मण्डल का है। विशेषकर डॉ. पंकज कुमार जी जैन, प्रबंध सम्पादक के अथक श्रम और सहयोग के प्रति विशेष रूप से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। अपने साथी सम्पादक मण्डल के विद्वानों के प्रति विनम्रता पूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ जिनका मार्गदर्शन साहित्यिक अवदान हमें सुलभता से प्राप्त हो सका। इन सभी साहित्यकार लेखकों के प्रति भी सहृदयता व्यक्त करता हूँ जिनके गौरवशाली शोधलेख हमें ग्रन्थ में प्रकाशनार्थ प्राप्त हुए। सुन्दर कम्पोजिंग के लिए श्री रोहित जी पचौरी तथा आदरणीय श्री विकास जी जैन गोधा के प्रति विनम्रता पूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने ग्रन्थ का गौरवशाली मुद्रण कर हमें सहयोग दिया। अन्त में कहना चाहूँगा कि - परम उपासक सरस्वती के जिनका नाम सुदर्शन है। बोलें तो मिसरी सी घोलें, वाणी में आकर्षण है।। विविध विद्याओं के ज्ञाता हैं अनुपम जिनका दर्शन है। इन पावन बेला पर उनका बार-बार अभिनन्दन है।। सैलसागर चौराहा टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001 प्रतिष्ठाचार्य पं. विमलकुमार सोरया पूर्व प्राचार्य, शा.सं. महाविद्यालय टीकमगढ़, मध्यप्रदेश प्रधान सम्पादक व सम्पादक मण्डल XI

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