Book Title: Shripal Charitra Author(s): Kashinath Jain Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir CalcuttaPage 11
________________ पहला परिच्छेद मतिसागर का यह कार्य अनेक स्वार्थी और द्वेषी लोगों को पसन्द न आया । ऐसे लोगों में श्रीपाल का एक चचेरा काका प्रधान था। उसका नाम अजीतसेन था । उसने सोचा कि यदि इस समय मतिसागर और श्रीपाल को किसी तरह मार डाला जाय, तो सिंहरथ का समस्त राज्य और समस्त सम्पत्ति हाथ आ सकती है। धीरे-धीरे वह इसके लिये षड्यन्त्र रचने लगा। राज्य के अनेक उच्च अधिकारियों और राजपरिवार के अनेक व्यक्तियों को उसने नाना प्रकार के प्रलोभन देकर हाथ में कर लिया । भीतर ही भीतर सब तैयारियां पूरी हो गयी। मतिसागर और श्रीपाल पर अब विपत्ति का पहाड़ टूटने ही वाला था, कि मतिसागर के किसी शुभ-चिन्तक ने उसको चुपचाप इस बात की सूचना दे दी । मतिसागर सावधान हो गया। उसने तुरन्त रानी को भी इस बात की सूचना दे दी। ' रानी यह भीषण समाचार सुनते ही विचलित ह उठी । राजकुमार पर आनेवाली विपत्ति की कल्पना से ही उसका नारी हृदय कंपित हो उठा । किन्तु अब कुछ सोचने या विलम्ब करने का समय न था । मतिसागर ने उसे सलाह देते हुये कहा, कि अब बाजी पलट गयी है । कुमार के प्राण बचाने का केवल एक यही उपाय दिखायी देता है, कि आप किसी तरह रात ही को कुमार यह स्थान छोड़ दे। किसी को कानों-कान इस बात की के साथ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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