Book Title: Shripal Charitra Author(s): Kashinath Jain Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir CalcuttaPage 10
________________ श्रीपाल - चरित्र रानी की व्याकुलता का समाचार सुन मतिसागर नामक मन्त्री उनके पास गया। उसने अनेक प्रकार से रानी को सान्त्वना देकर समझाया कि अब इस कल्पांत से कोई लाभ नहीं। जो होना था सो गया। अपने हृदय को दृढ़ बनाइये और राज-काज की बागडोर अपने हाथ में लीजिये । राज कुमार की अवस्था अभी बहुत छोटी है। यदि आप इस समय अपने को न सम्हालियेगा तो राज्य हाथ में रहना कठिन हो जायेगा । भविष्य की चिन्ता, भूत और वर्तमान को भुला देती है। मन्त्री की बातें सुन रानी को होश हुआ । उसकी बुद्धि बहुत ही तीक्ष्ण थी। राज्य के शत्रु और मित्रों की बातें उससे छिपी न थी । उसने अपने आन्तरिक दुःख को हृदय में रख, मन्त्री से ही कहा, “मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है। आपके सिवा मुझे अब और किसी का सहारा भी नहीं है। आप राज कुमार को गद्दी पर बैठा कर राज-काज चलाइये और मेरे विश्वास को सफल बनाइये ।” मन्त्री वास्तव में बड़ा स्वामी भक्त था । उसने पुनः रानी को सान्त्वना दे, राजा की अन्तिम क्रिया का प्रबन्ध किया । इससे निवृत्त होने के बाद उसने प्रजा की अनुमति ग्रहण कर कुमार श्रीपाल को सिंहासनारूढ़ कराया । राज्य भर में उसके नाम की दोहाई दी गयी । यह सब प्रथायें पूर्ण होने पर वह पूर्ववत् राज्य का समस्त कार्य संचालन करने लगा । Jain Education International ३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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