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| प्रतिक्रमण करने की विधि |
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[प्रतिक्रमण प्रारम्भ करने से पहले पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में यदि गुरुदेव विराजित हों तो गुरुदेव के सन्मुख होकर सामने बैठकर 'चउवीसत्थव' करना चाहिए। ___ इसकी विधि सामायिक की विधि के समान ही है। अंतर केवल इतना है कि 'करेमि भंते' के पाठ को नहीं बोलना चाहिए।
चउवीसत्थव के अनन्तर 'तिक्खुत्तो' पाठ तीन बार बोलकर, गुरुदेव को वन्दना करके गुरुदेव से प्रतिक्रमण करने की आज्ञा लेनी चाहिए। आज्ञा लेकर सर्वप्रथम श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र का प्रथम पाठ 'इच्छामिणं भंते' बोलें।
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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र