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मेहुणविहिं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, देव-देवी सम्बन्धी, दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धी एगविहं एगविहेणं, न करेमि, कायसा,
ऐसा चौथा स्थूल स्वदारसंतोष परदारविवर्जनरूप मैथुन विरमण व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँ
इत्वरिक-परिगृहीता से गमन किया हो, अपरिगृहीता से गमन किया हो, अनंगक्रीड़ा की हो, पर-विवाह कराया हो, काम-भोग की तीव्र अभिलाषा की हो, तो जो मे देवसिओ आइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
| पंचम अपरिग्रह अणुव्रत | पाँचवाँ अणुव्रत-थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं, धन-धान्य का यथा परिमाण,
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
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