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चार मूल- उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नंदी, अनुयोगद्वार, चार छेद- दशाश्रुत-स्कन्ध, वृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ, बत्तीसवाँ आवश्यक सूत्र, आदि अनेक ग्रन्थों के जानने वाले, करण सत्तरि, चरण सत्तरि का पालन करने वाले, सम्यक्त्वरूप प्रकाश के करने वाले, मिथ्यात्वरूप अन्धकार के मेटने वाले, धर्म को दीपाने वाले, डिगते प्राणी को धर्म में स्थिर करने वाले, पच्चीस गुणों से विराजमान हैं। उन उपाध्याय जी महाराज को वन्दना एवं नमस्कार करता हूँ तथा जानतेअनजानते किसी भी प्रकार की अविनय एवं आशातना हुई हो, तो तीन करण और तीन योग से क्षमा चाहता हूँ।
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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र