________________
करो सज्झाय ते वली,
टाली सब अतिचार, लाल रे ।। कर. ॥ ६ ॥ गोत्र तीर्थंकर निर्मलो,
करतो बांधे दिन रात, लाल रे। कर्म तणी कोडी खपे,
टले सकल व्याघात, लाल रे ॥ कर. ॥ ७ ॥ दोय बखत नित्य कीजिये,
पडिक्कमणे शुद्ध चित, लाल रे। लीला लहर मिले-मिले,
अविचल गति में नित्त, लाल रे ॥ कर. ॥ ८॥ सामायिक परशाद थी,
पाये अमर विमान, लाल रे। धर्मसिंह मुनिवर कहे, मुक्ति तणो छे निधान, लाल रे ॥ कर. ॥ ९ ॥
आत्म-चिन्तन भूलो मन भमरा कांई भमियो,
भमियो दिवस ने रात।
१३४
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र