Book Title: Shravak Pratikraman Sutra
Author(s): Pushkarmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भव सागर दुःख जल भर्यो,
तिरवो जीवड़ा तेह। बीच में ग्रह सबलो अछे,
करो प्रभुजी सुं नेह ।। भूलो. ॥ ६॥ धंधो करी धन जोड़ियो,
लाखा ऊपर क्रोड। मरणा री वेला मानवी,
लेसी कंदोरो तोड़॥ भूलो. ॥ ७ ॥ कांई नहीं लारे चालियो,
कीनों पर भव वास। हाड जले ज्युं लाकड़ी,
केस जले ज्युं घास ॥ भूलो. ॥ ८॥ लाख चौरासी तूं भम्यो,
भमियो अनन्ती काय। दया धरम पाल्यो नहीं,
ज्युं आओ त्युं जाय ॥ भूलो. ॥९॥ उलटी नदी मारग चालणो,
जाणो पेले रे पार।
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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र

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