Book Title: Shravak Pratikraman Sutra
Author(s): Pushkarmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 148
________________ यह है जीवन की डायरी.. * प्रतिक्रमण-जीवन की डायरी है। * अज्ञान, मोह एवं प्रमादवश प्राणी भूल करता है, असत्/अशुभ आचरण भी कर लेता है। अंधकार में भटकते हुए प्राणी को ठोकर लगना कोई बड़ी बात नहीं है, परन्तु जैसे ही हृदय में ज्ञान व कर्तव्य बोध का दीपक जगमगाए, आत्मभाव की उज्ज्वल किरणें चमकने लगें, तो प्राणी अपनी भूल का बोध कर लेता है। अपने प्रमादाचरण का निरीक्षण/समीक्षण करता है। अपने अज्ञान आचरण पर पश्चात्ताप करता है, मन से ग्लानि का अनुभव करता है और फिर भविष्य में पुनः असद् / अशुभ आचरण नहीं करने का शुभ संकल्प करता है। बस, इसी का नाम है प्रतिक्रमण। यही है उन्नति और प्रगति का राजमार्ग / यही है आत्म-विकास का प्रशस्त पथ। * जैन श्रावक एवं श्रमण के लिए प्रतिक्रमण जीवन का दर्पण है। * पूज्य गुरूदेव उपाध्यायश्री के दिशा निर्देशन में श्रावक प्रतिक्रमण का सविधि चित्रमय प्रकाशन पाठकों के लिए अतीव उपयोगी सिद्ध होगा। श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर। चौधरी ऑफसेट प्रा. लि. - 0294-2584071, 248578413867

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