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सवैया आदरी संजम भार, करणी करे अपार, सुमति गुपति धार, विकथा निवारी है। जयणा करे छ काय, सावद्य न बोले वाय, बुज्झाई कषाय लाय, किरिया भण्डारी है। ज्ञान भणे आठों याम, लेवे भगवन्त नाम, धरम को करे काम, ममता को मारी है। कहत है तिलोक रिख, करमों का टाले विख, ऐसे मुनिराज ताकुं, वंदना हमारी है।
गुरुदेव-वन्दना जैसे कपड़ा को थाण, दरजी वेंतत आण, खण्ड खण्ड करे जाण, देत सो सुधारी है। काठ के ज्युं सूत्रधार, हेम को कसे सुनार, माटी के ज्युं कुम्भकार, पात्र करे त्यारी है। धरती के किरसाण, लोह के लुहार जान, सीलावट सीला आण, घाट घड़े भारी है। कहत है तिलोक रिख, सुधारे ज्युं गुरु सिख, गुरु उपकारी नित, जाऊं बलिहारी है।
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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
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