________________
सवैया पढ़त इग्यारे अंग, करमों सुं करे जंग, पाखण्डी को मान भंग, करण हुशियारी है। चउदे पूरव धार, जानत आगम सार, भवियन के सुखकार, भ्रमणा निवारी है। पढ़ावे भविक जन, स्थिर कर देत मन, तप करि तावे तन, ममता निवारी है। कहत है तिलोक रिख, ज्ञान भानु परतिख, ऐसे उपाध्याय ताकुं, वंदना हमारी है।
।
- नमो लोए सव्व साहूणं नमस्कार हो, लोक में समस्त साधुओं को। साधु जी महाराज कैसे हैं ? स्व-पर कार्य के साधने वाले, सम्यक्त्व के दातार, ज्ञान के दातार, संयम के दातार, परोपकारी अपने
धर्माचार्य पूज्य गुरुदेव श्री२....... २. यहाँ अपने पूज्य गुरुदेव का नाम बोलना चाहिए।
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
१०७