Book Title: Shravak Pratikraman Sutra
Author(s): Pushkarmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 128
________________ लोग-हियाणं, लोग-पईवाणं, लोग-पजोयगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं, दीवो ताणं सरणगइपइट्ठा, अप्पडिहय-वर-नाण-दंसण-धराणं, विअट्ट-छउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिण्णाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोयगाणं, सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुयमणंत-मक्खय-मव्वावाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं, ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जियभयाणं। __ सन्त सतीजन विराजते हों तो उन्हें 'तिक्खुत्तो' से तीन बार वन्दन करें तथा न विराजते हों तो पूर्व तथा श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र १२५ १२५ -

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