Book Title: Shravak Pratikraman Sutra
Author(s): Pushkarmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 125
________________ (आप आपके धारणा अनुसार) तिविहं पि, चउविहं पि, आहारंअसणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहिवत्ति आगारेणं, वोसिरामि ॥ ( वोसिरामि कहकर ) तत्तु सामायिक एक, चउवीसत्थवो दो, वंदना तीन, प्रतिक्रमण चार, काउसग्ग पाँच, पच्चक्खाण छह, ये छहों आवश्यक पूरे हुए। इनमें अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, जानते - अनजानते कोई दोष लगा हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । इन छहों आवश्यक के पाठों को उच्चारण करते समय काना, मात्रा, अनुस्वार, पद, अक्षर अधिक न्यून तथा आगे का पीछे, पीछे का आगे कहा हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । १. अन्य को कराने हों तो 'वासिरे' ऐसा पढ़े । १२२ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र

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