Book Title: Shravak Pratikraman Sutra
Author(s): Pushkarmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 124
________________ सव्वधम्माइक्कमणाए, आसायणाए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ, तस्स खमासमणो! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। (निम्न रीति से बोलकर खड़ा हो) सामायिक एक, चउवीसत्थवो दो, वंदना तीन, प्रतिक्रमण चार, काउसग्ग पाँच यह पाँच आवश्यक पूरे हुए। छठे आवश्यक की आज्ञा है। धन्य श्री महावीर स्वामी अन्तर्यामी, पच्चक्खाण करा दो गुरुदेव स्वामी। ___ (अब यदि वहाँ पर सन्त व सतीजम हों, तो उनसे; वे न हों, तो बड़े श्रावक से; वे भी न हों, तो स्वयमेव निम्न पाठ से अपनी धारणा अनुसार प्रत्याख्यान करें।) समुच्चय-प्रत्याख्यान सूत्र | गंठि-सहियं, मुट्ठि-सहियं, नमुक्कार-सहियं, पोरिसियं, साड्ढ पोरिसियं, श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र १२१

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