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एक हजार आठ बार 'तिक्खुत्तो' के पाठ से बारम्बार वंदना एवं नमस्कार करता हूँ तथा जानते-अनजानते किसी भी प्रकार की अविनय एवं आशातना हुई हो, तो तीन करण और तीन योग से क्षमा चाहता हूँ।
सवैया नमो श्री अरिहंत, करमों का किया अन्त, हुवा सो केवलवन्त, करुणा भण्डारी है। अतिशय चौंतीस धार, पैंतीस वाणी उच्चार, समझावे नर नार, पर उपकारी है। शरीर सुन्दराकार, सूरज सो झलकार, गुण हैं अनन्त सार, दोष परिहारी है। कहत है तिलोक रिख, मन वच काय करि, झुक-झुक बारंबार, वंदना हमारी है ॥१॥
नमो सिद्धाणं नमस्कार हो सिद्धों को ! सिद्ध भगवान कैसे हैं ? सकल कार्य सिद्ध कर,
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
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