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देवे वा, नागे वा, जक्खे वा, भूए वा, एत्तिएहिं आगरेहिं अन्नत्थ) जावजीवाए, दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा,
ऐसा आठवाँ अनर्थदण्ड विरमण व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँ
कन्दर्प की कथा की हो, भाण्ड-कुचेष्टा की हो, मुखरी (बिना प्रयोजन) वचन बोला हो,
अधिकरण जोड़कर रखे हों, उपभोग-परिभोग अधिक बढ़ाए हों, तो जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
| नवम सामायिक व्रत नवमं सामाइयव्वयं सावज जोगंपच्चक्खामि जाव नियम पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं,
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ।
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