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पुंछणेणं, पाडिहारिएण, पीढ-फलग-सिज्जासंथारएणं, ओसह-भेसज्जेणं य पडिलाभेमाणे, विहरामि। ऐसी मेरी श्रद्धा प्ररूपणा है, साधु-साध्वी का योग मिलने पर निर्दोष दान दूं तब शुद्ध होऊँ।
ऐसा बारहवाँ अतिथि-संविभाग व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँ
सूज्झती वस्तु सचित्त पर रक्खी हो, सचित्त वस्तु से ढंकी हो, काल का अतिक्रमण किया हो, (आप सूज्झते होते हुए दूसरे से दान दिराया हो) अपनी वस्तु को दूसरे की बतलाई हो, मत्सर भाव से दान दिया हो, तो जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र