________________
पाँच आस्रव सेवन करने के पच्चक्खाण, जाव अहोरत्तं दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयमा, कायसा, जितनी भूमिका की मर्यादा रखी है उसमें जो द्रव्यादिक की मर्यादा की है, उसके उपरान्त उपभोग-परिभोग निमित्त से भोगने का पच्चक्खाण, जाव अहोरत्तं एगविहं तिविहेणं, न करेमि, मणसा, वयसा, कायसा,
ऐसा दशवाँ देशावकाशिक व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँमर्यादित सीमा के बाहर की वस्तु मँगाई हो, अथवा बाहर वस्तु भेजी हो, शब्द करके चेताया हो, रूप दिखाकर अपना भाव प्रकट किया हो, कंकर आदि फेंककर दूसरे को बुलाया हो, तो जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
८६
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र