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| कायोत्सर्ग दोषापहार सूत्र | कायोत्सर्ग में आर्तध्यान, रौद्रध्यान ध्याया हो, और धर्मध्यान, शुक्लध्यान न ध्याया हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। [यहाँ प्रथम आवश्यक पूर्ण हुआ, अब दूसरे आवश्यक की गुरु वन्दना कर आज्ञा लें।] [दूसरे आवश्यक में 'लोगस्स' बोलें]
| चतुर्विंशतिस्तव सूत्र लोगस्स उज्जोयगरे, धम्मतित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली॥१॥ उसभमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइंच पउमप्पहं सुपासं, जिणंच चंदप्पहं वंदे॥२॥
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
कमा
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