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| अष्टादश पापस्थानक | अठारह पापस्थानक के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँ
(१) प्राणातिपात, (२) मृषावाद, (३) अदत्तादान, (४) मैथुन, (५) परिग्रह, (६) क्रोध, (७) मान, (८) माया, (९) लोभ, (१०) राग, (११) द्वेष, (१२) कलह, (१३) अभ्याख्यान, (१४) पैशुन्य, (१५) पर-परिवाद, (१६) रति-अरति, (१७) मायामृषावाद, (१८) मिथ्यादर्शन-शल्य।
इन अठारह पापस्थानों में से किसी का सेवन किया हो, कराया हो, करते हुए को भला जाना हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
| निन्यानवे अतिचार | चौदह ज्ञान के, पाँच सम्यक्त्व के, साठ बारह व्रतों के, पन्द्रह कर्मादान के, पाँच संलेखना के, इस प्रकार निन्यानवे अतिचारों के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र