Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ श्रमण प्रतिक्रमण mr कायेन काया से न करोमि नहीं करूंगा न कारयामि नहीं कराऊंगा कुर्वन्तमपि अन्यं करते हुए दूसरे का भी न समनुजानामि अनुमोदन नहीं करूंगा तस्य उसका (अतीत में किए हुए पाप का) भदन्त ! भगवन् प्रतिक्रामामि प्रतिक्रमण करता हूं। निदामि आत्मसाक्षी से निंदा करता हूं। गहें आपकी साक्षी से गर्दा करता हूं। आत्मानं अपनी आत्मा (शरीर) का व्युत्सृजामि । त्याग करता हूं। भावार्थ भगवन् ! मैं सामायिक' करता हूं। मैं जीवन-पर्यन्त समस्त पापकारी प्रवृत्ति का, तीन कारण-~~-मन, वचन और काया से तथा तीन योग- करने, कराने और अनुमोदन करने का प्रत्याख्यान करता हूं। ___ भगवन् ! अतीत में किए हुए पाप का मैं प्रतिक्रमण करता हूं, आत्मसाक्षी से उसकी निंदा करता हूं, आपकी साक्षी से उसकी गर्दी करता हं और अपने आपको सपाप प्रवृत्तियों से पृथक करता हूं। ४. आलोयण-सुत्तं ५. काउस्सग-पइण्णा सुत्त' १. समय का अर्थ है-आत्मा । आत्मा में अवस्थित रहने का अनुष्ठान सामायिक है। २. देखें-चतुर्थ प्रकरण का पडिक्कमण-सुत्तं । इस पाठ में 'पडिक्कमिउं' के स्थान में 'आलोइउं' पाट होगा। आलोइङ = आलोचना करने की ३. देखें--पंचम प्रकरण का काउस्सग्गपइण्णा सुत्तं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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