Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 64
________________ पच्चक्खाणं अईअं पडिक्कमामि पडिपुन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामि । संस्कृत छाया शब्दार्थ अतीतं मैं अतीत का प्रतिक्रामामि प्रतिक्रमण करता हूं, प्रत्युत्पन्न वर्तमान का संवृणोमि संवर करता हूं, अनागतं भविष्य का प्रत्याख्यामि। प्रत्याख्यान करता हूं। २. पच्चक्खाण-सुत्तं (क) नमुक्कारसहियं सूरे उग्गए नमुक्कारसहियं पच्चक्खामि चउन्विहं पि आहार- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं वोसिरामि । संस्कृत छाया शब्दार्थ सूरे सूर्य के उद्गते उग जाने पर नमस्कारसहितां नमस्कारसंहिता का प्रत्याख्यामि प्रत्याख्यान करता हूं चतुविधमपि चतुर्विध आहारं आहार का अशनं अशन पान खाद्यं खाद्य (और) स्वाचं स्वाद्य का १. सूर्योदय से अडतालिस मिनिट का कालमान । राजस्णानी भाषा में 'नोकारसी'। पानं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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