Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ परिशिष्ट २ पंचपद - वन्दना से णमो अरिहंताणं- - परम अर्हता संपन्न, चार घनघाती कर्म का क्षय कर, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त शक्ति और आठ प्रातिहार्यं, इन बारह गुणों से सुशोभित हैं, चउतीस अतिशय, पैंतीस वचनातिशय युक्त, धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक, वर्तमान तीर्थंकर सीमंधर आदि अर्हतों को विनम्रभाव से पंचांग प्रणतिपूर्वक वन्दना - तिक्खुत्तो याहि ...... | णमो सिद्धाणं- - परम सिद्धि संप्राप्त, अष्ट कर्म क्षय कर केवलज्ञान, केवलदर्शन, असंवेदन, आत्म-मरण, अटल - अवगाहन, अमूर्ति, अगुरुलघु और निरन्तराय इन अष्टगुणों से सम्पन्न, परमात्मा, परमेश्वर, जन्म, मरण, जरा, रोग, शोक, दुःख, दारिद्र्य रहित अनन्त सिद्धों को विनम्रभाव से पंचांग प्रणतिपूर्वक वंदना - तिक्खुतो आयाहिणं । णमो आयरियाणं - परम आचार-कुशल, धर्मोपदेशक, धर्मधुरंधर, बहुश्रुत, मेधावी, सत्य-निष्ठ, श्रद्धा धृति - शक्ति - शान्ति सम्पन्न, अष्टविध गणि-सम्पदा' से सुशोभित, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के ज्ञाता, चतुर्विध धर्मसंघ के शास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि एवं छत्तीस गुण के धारक' वर्तमान आचार्यश्री तुलसी आदि आचार्यों को पंचांग प्रणतिपूर्वक वन्दना -- 1 - तिक्खुत्तो आयाहिणं! णमो उवज्झायाणं - परम श्रुत-स्वाध्यायी, धर्मसंघ में आचार्य द्वारा नियुक्त, ग्यारह अंग, बारह उपांग और अध्ययन-अध्यापन में कुशल - इन १. १. आचार - संपदा, २. श्रुत-संपदा, ३. शरीर-संपदा, ४. वचन संपदा, ५. वाचना - संपदा, ६ मति-संपदा, ७. प्रयोग - संपदा, संग्रह संपदा । २. पांच महाव्रत, पांच आचार, पांच समिति, तीन गुप्ति, नव-बाड़सहित ब्रह्मचर्य का पालन, चार कषाय- वर्जन, पंचेन्द्रिय - विजय | अथवा १. देस' कुल' जाइ' रूवी संघयणा' धिइ' जुओ अनासंसी, अविकत्थणो' अमाई' थिरपरिवाड़ी" गहियवक्को" । जियपरिसो" जियनिद्दो" मज्झत्थो" देसकालभावण्णू" आसन्न लद्धपइभो" नाणाविह देसभा सण्णू | " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80