Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ ६२ रहूं - इस भावना से मेरा चित्त भावित रहे । ५. अपरिग्रह महाव्रत पदार्थ का संग्रह, अप्राप्त वस्तु की आकांक्षा और प्राप्त वस्तु की मूर्च्छा कर अपरिग्रह महाव्रत की विराधना की हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । श्रमण प्रतिक्रमण भावना १. मनोज्ञ - अमोज्ञ शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श के प्रति प्रियताअप्रियता का भाव न आए, इस भावना से मेरा चित्त भावित रहे । २. उपकरण की मर्यादा का अतिक्रमण न हो, इस भावना से मेरा चित्त भावित रहे । ३. अल्पोषधि की भावना से मेरा चित्त भावित रहे । अणिyaarat समुयाणचरिया, अन्नायउंछं परिक्कया य । rudranी कलहविवज्जणा य, विहारचरिया इसिणं पसत्था ॥ रात्रि भोजन- विरमण व्रत अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, औषध आदि रात्रि में रखकर या भोगकर रात्रि - भोजन विरमण व्रत की विराधना की हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । पांच समितियां १. ईर्या समिति - शरीर प्रमाण भूमि को देख, इन्द्रिय-बिषय और स्वाध्याय का वर्जन कर तथा मौनपूर्वक चलने में प्रमाद किया हो, तस्स मिच्छामि दुक्कडं । २. भाषा समिति - निरवद्य, परिमित, संयत और विचारपूर्वक बोलने में प्रमाद किया हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । ३. एषणा समिति - गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगषणा में प्रमाद किया हो, तस्स मिच्छामि दुक्कडं । ४. उत्सर्ग समिति – वस्त्र, पात्र आदि उपकरण संयमपूर्वक लेनेरखने में प्रमाद किया हो, तस्स मिच्छामि दुक्कडं । ५. उत्सर्ग समिति - उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म आदि का संयमपूर्वक परिष्ठापन करने में प्रमाद किया हो, तस्स मिच्छामि दुक्कडं । तीन गुप्तियां १. मनोगुप्ति - विषय, कषाय आदि सावद्य प्रवृत्ति से मन के निवर्तन तथा मनोनिग्रह में प्रमाद किया हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80