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श्रमण प्रतिक्रमण
ध्यान सम्पन्न करने के पश्चात् एक 'लोगस्स' का उच्चारण। २. प्रत्येक बार ध्यान की संपन्नता नमस्कारमंत्रपूर्वक । ३. छठे आवश्यक के अंत में दो बार 'नमोत्थु णं' का पाठ बोला
जाता है। पहला सिद्ध भगवान् के प्रति, दूसरा अरिहंत के प्रति । फिर 'नमोत्थु णं' का उच्चारण नहीं किया जाता, केवल इतना ही कहा जाता है—'मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स थवत्थुई मंगलं ।' ४. देवसियं, राइयं, पक्खियं, चाउमासियं, सांवच्छरि-इन शब्दों
का उच्चारण यथाकाल, यथास्थान करना चाहिए।
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