Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ श्रमण प्रतिक्रमण संस्कृत छाया तस्य उत्तरीकरणेन प्रायश्चित्तकरणेन विशोधिकरणेन विशल्यीकरणेन पापानां कर्मणां निर्धातनाथ तिष्ठामि ककायोत्सर्गम् अन्यत्र उच्छ्वसितात् निःश्वसितात् कासितात् क्षुतात् जृम्भितात् 'उड्डुएणं' वातनिसर्गात् भ्रमल्याः पित्तमूच्र्छायाः सूक्ष्मेभ्यः अंगसञ्चालेभ्यः सूक्ष्मेभ्यः श्वेलसञ्चालेभ्यः सूक्ष्मेभ्यः दृष्टिसञ्चालेभ्यः एमादिभिः आकारैः अभग्नः अविराधितो भवेद शब्दार्थ उसके परिष्कार द्वारा प्रायश्चित्त द्वारा विशोधि द्वारा शल्य-विमोचन द्वारा पापाकर्मों के विनाश के लिए स्थित होता हूं कायोत्सर्ग में (निम्न निर्दिष्ट को) छोड़कर उच्छ्वास निःश्बास खांसी छींक जम्हाई डकार अधोवायु चक्कर पित्तजनित मूर्छा शरीर के अंगों के सूक्ष्म संचार श्लेष्म के सूक्ष्म संचार (और) दृष्टि के सूक्ष्म संचार कोइस प्रकार के अन्य अपवादों से अभग्न अविराधित मम कायोत्सर्गः यावद् अर्हता भगवतां नमस्कारेण मेरा कायोत्सर्ग जब तक अर्हत् भगवान् को नमस्कार करके नहीं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80