Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 61
________________ काउस्सग्गो १. अइयार-विसोहण-सुत्तं देवसिक-अइयार-विसोहणटुं करेमि काउस्सग्गं । संस्कृत छाया शब्दार्थ देवसिकातिचारविशोधनार्थ देवसिक अतिचार की विशुद्धि के लिए करोमि करता हूं कायोत्सर्गम् । कायोत्सर्ग । भावार्थ देवसिक अतिचार की विशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करता हूं। २. नमुक्कार-सुत्तं ३. सामाइय-सुत्तं ५. अइयार-चितण-सुत्तं' ५. काउस्सग्गपइण्णा-सुत्तं ___तस्स उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डुएणं वायनिसग्गेणं भमलीए पित्तमुच्छाए सूहमेहिं अंगसंचालेहिं सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ होज्ज मे काउस्सग्गो जाव अरहताणं भगवंताणं नमोक्कारेणं न पारेमि ताव कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि। १,२. देखें पहला प्रकरण। ३. यहां चतुर्थ प्रकरण का पडिक्कमण सुत्तं आएगा । इस पाठ में 'पडिक्कमिउं' के स्थान में 'ठाइउं काउस्सगं' पाठ होगा । ठाइउं-स्थापना करने की काउस्सग्गंकायोत्सर्ग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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