Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 65
________________ ५६ श्रमण प्रतिक्रमण अन्यत्र छोड़कर अनाभोगात् अज्ञान और सहसाकारात् आकस्मिकता को व्युत्सृजामि। व्युत्सर्ग करता हूं। (ख) पोरिसी सूरे उग्गए पोरिसिं पच्चक्खामि चउन्विहं आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरामि । संस्कृत छाया शब्दार्थ सूरे सूर्य के उद्गते उग जाने पर पौरुषी 'पौरुषी" का प्रत्याख्यामि प्रत्याख्यान करता हूं चतुर्विधमपि चतुर्विध आहारं आहार का अशनं पानं पान खाद्य (और) स्वाध का अन्यत्र छोड़कर अनाभोगात अज्ञान और सहसाकारात् आकस्मिकता को प्रच्छन्नकालात् काल का पता न चलने पर दिङ्मोहात् दिशामूढ़ता हो जाने पर साधुवचनात् साधु के कहने पर सर्वसमाधिप्रत्ययाकारात् सर्वसमाधिहेतुक व्युत्सृजामि । व्युत्सर्ग करता हूं। (ग) अभत्तठें सूरे उग्गए अभत्तह्र पच्चक्खामि चउन्विहंपि आहारंअसणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरामि । अशन खाद्यं स्वाचं १. एक प्रहर का कालमान । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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