Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ श्रमण प्रतिक्रमण धर्म, कुन्थु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, अरिष्टनेमि, पार्श्व और वर्द्धमान को वंदन करता हूं। इस प्रकार जिनकी मैंने स्तुति की है, जो कर्म-रज-मल से मुक्त हैं, जो जरा और मरण से मुक्त हो चुके हैं, वे चौबीस जिनेश्वर तीर्थंकर मुझ पर प्रसन्न हों। मैंने जिनका कीर्तन, वंदन किया है, वे लोक में उत्तम सिद्ध भगवान् मुझे आरोग्य, बोधि-लाभ और उत्तम समाधि दें। जो चंद्रमाओं से भी निर्मलतर, सूर्यों से भी अधिक प्रकाश करने वाले और समुद्र के समान गंभीर हैं, वे सिद्ध भगवान् मुझे मुक्ति दें। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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