Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ श्रमण प्रतिक्रमण ३९ के विश्वास के कारण, भोजन, पानी, विनय, सेवा, आलाप - संलाप, बैठनेउठने, बीच में बोलने, आचार्य की बात को काट अपनी बात ऊपर रखने आदि प्रवृत्तियों में मेरे द्वारा सूक्ष्म या स्थूल —— जो कुछ विनयहीन व्यवहार या आचरण हुआ हो, जिसे मैं नहीं जानता, आप जानते हैं, उन सबके लिए मैं क्षमायाचना करता हूं । उस संबंधी मेरा दुष्कृत निष्फल हो । १८.८४ लाख जीवयोनि' संदर्भ-स्थल : १. भय के सात स्थान ( समवाओ, ७ १) भय मोहनीय कर्म की एक प्रकृति है । उसके प्रभाव से होने वाला आत्म- परिणाम भय कहलाता है । वह सात प्रकार का है— १. इहलोकभय - सजातीय भय-जैसे मनुष्य को मनुष्य से होने वाला भय २. परलोकभय - विजातीय भय -- जैसे तिर्यञ्च देव आदि से होने वाला भय । ३. आदानभय-धन आदि के अपहरण से होने वाला भय ४. अकस्मात् भय—बाह्य निमित्तों के बिना अपने ही विकल्पों से होने वाला भय ५. वेदना भय - पीड़ा आदि से उत्पन्न भय ६. मरण भय - मृत्यु का भय ७. आलोक भय - अकीर्ति का भय । २. मद के आठ स्थान ( समवाओ, ८।१ ) १. जातिमद २. कुलमद ३. बलमद ४. रूपमद ५. तपोमद ६. श्रुतमद ३. ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियां (समवाओ, ९।१) १. परिशिष्ट ३ । ७. लाभमद ८. ऐश्वर्यमद । १. विविक्त शयन और आसन का सेवन करना २. केवल स्त्रियों में धर्मोपदेश न करना ३. स्त्रियों की निषधा-स्थान का सेवन न करना ४. स्त्रियों के अवयवों को आसक्त दृष्टि से न देखना ५. प्रणीतरस-गरिष्ठ भोजन न करना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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