Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 56
________________ श्रमण प्रतिक्रमण ४७ ३. स्त्रियों के अवयवों का अवलोकन न करना ४. पूर्व भुक्त भोगों की स्मृति न करना ५. प्रणीत-गरिष्ठ आहार न करना। अपरिग्रह महाव्रत की पांच भावनाएं पांचों इन्द्रियों के प्रति होने वाले राग-आसक्ति से उपरत रहना। २०. इनमें तीन आगम ग्रंथों के उद्देशन-काल (अध्ययन) का संकेत है-- १. दशाश्रुतस्कंध-१० अध्ययन २. बृहत्कल्प--६ अध्ययन ३. व्यवहारसूत्र-१० अध्ययन (समवाओ, २६।१) उद्देशन काल का अर्थ है-जिसकी वाचना एक दिन में एक साथ दी जा सके । इसके आधार पर प्रत्येक अध्ययन का एक-एक उद्देशन-काल होता है। २१. अनगार के सताबीस गुण (समवाओ, २७।१) १. प्राणातिपात-विरमण १५. भावसत्य-अन्तरात्मा की पवित्रता २. मृषावाद-विरमण १६. करणसत्य-क्रिया की पवित्रता ३. अदत्तादान-विरमण १७. योगसत्य--मन-वचन-काया का ४. मैथुन-विरमण सम्यक् प्रवर्तन ५. परिग्रह-विरमण १८. क्षमा ६. श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह १९. वैराग्य ७. चक्षुरिन्द्रिय-निग्रह २०. मन-समाहरण-मन का संकोचन ८. घ्राणेन्द्रिय-निग्रह २१. वचन-समाहरण-वचन का संकोचन ९. रसनेन्द्रिय-निग्रह २२. काय-समाहरण-काया का संकोचन १८. स्पर्शनेन्द्रिय-निग्रह २३. ज्ञान-संपन्नता ११. क्रोध-विवेक २४. दर्शन-संपन्नता १२. मान-विवेक २५. चारित्र-संपन्नता १३. माया-विवेक २६. वेदना-अधिसहन १४. लोभ विवेक २७. मारणान्तिक अधिसहन । ___ आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति (पृष्ठ ११३) में इनका उल्लेख भिन्न प्रकार से है। वहां रात्रिभोजन-विरमण-सहित व्रत-षट्क, पांच इन्द्रिय-निग्रह, षटकाय, (१८) भावसत्य, (१९) करणसत्य, (२०) क्षमा, (२१) विरागता, (२२-२४) मनोवाक्कायनिग्रह, (२५) संयमयोगयुक्तता, (२६) वेदनाअभिसहन, (२७) मारणान्तिक अभिसहन । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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