Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ श्रमण प्रतिक्रमण १७. सूत्रकृताङ्ग के तेबीस अध्ययन सूत्रकृताङ्ग के दो श्रुतस्कन्ध हैं । पहले श्रुतस्कन्ध में सोलह और दूसरे श्रुतस्कन्ध में सात अध्ययन हैं । इस प्रकार पूरे सूत्रकृतांग के (१६+७) तेबीस अध्ययन होते हैं। १८. देव के चौबीस प्रकार (समवाओ, २४।१,३) __ इसके दो वर्गीकरण प्राप्त हैं । एक के अनुसार चौबीस देवाधिदेव (तीर्थकर) गृहीत हैं। दूसरे के अनुसार चौबीस देव-इन्द्र ये हैं। १. भवनपति देवों के दस प्रकार २. व्यन्तर देवों के आठ प्रकार ३. ज्योतिषी देवों के पांच प्रकार ४. वैमानिक देवों का एक प्रकार कुल योग (१०++५+१)=२४ १९. पचीस भावनाएं (समवाओ, २५॥१) महाव्रतों की सुरक्षा और पुष्टि के लिए जिसका प्रतिदिन चिन्तन और क्रियान्वयन किया जाता है, वह भावना है। पांच महाव्रतों की पचीस भावनाएं हैं अहिंसा महाव्रत की पांच भावनाएं १. ईर्या समिति २. मनोगुप्ति ३. वचनगुप्ति ४. आलोक-भाजन भोजन ५. आदानभांडामत्रनिक्षेपणा समिति । सत्य महाव्रत की पांच भावनाएं १. विधियुक्त बोलना २. क्रोधविवेक ३. लोभविवेक ४. भयविवेक ५. हास्यविवेक। अचौर्य महाव्रत की पांच भावनाएं१. अवग्रह की अनुज्ञा लेना २. अवग्रह का सीमा-बोध करना ३. अनुज्ञात अवग्रह की सीमा में रहना ४. सार्मिकों द्वारा याचित अवग्रह में उनकी आज्ञा लेकर रहना ५. भक्त-पान का आचार्य आदि को दिखाकर उपभोग करना । ब्रह्मचर्य महाव्रत की पांच भावनाएं--- १. स्त्री, पशु और नपुंसक से संयुक्त शयन और आसन का वर्जन करना २. स्त्रीकथा का वर्जन करना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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