Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 53
________________ ४४ श्रमण प्रतिक्रमण इसका ताप्पर्य है - मोक्षमार्ग में अवस्थिति, चैतन्य के प्रति जागरूकता । इस समाधि का न होना असमाधि है । उसके बीस स्थान हैं, भेद हैं अथवा उत्पत्ति के कारण हैं १. शीघ्र गति से चलना २. प्रमार्जन किये बिना चलना ३. अविधि से प्रमार्जन कर चलना ४. प्रमाण से अधिक शय्या, आसन आदि रखना ५. रत्नाधिक मुनियों का पराभव करना ६. स्थविरों का उपघात करना ७. प्राणियों का उपघात करना ८. प्रतिक्षण क्रोध करना ९. अत्यन्त क्रुद्ध होना १०. परोक्ष में अवर्णवाद बोलना ११. बार-बार निश्चयकारिणी भाषा बोलना १२. अनुत्पन्न नये कलहों को उत्पन्न करना १३. क्षामित और उपशान्त पुराने कलहों की उदीरणा करना १४. सचित्त रजों से लिप्त हाथ से भिक्षा आदि लेना, सचित्त रजों से लिप्त पैरों से चंक्रमण करना १५. अकाल में स्वाध्याय करना १६. कलह करना १७. बकवास करना १८. गण में भेद डालना, गण के मन को दु:खाने वाली भाषा बोलना १९. सूर्योदय से सूर्यास्त तक बार-बार खाना २०. एषणा समिति का पालन न करना । १५, शबल के इकबीस प्रकार (समवाओ, २१1१ ) जिस आचरण के द्वारा चारित्र धब्बों वाला होता है, उस आचरण या आचरण - कर्त्ता को 'शबल' कहा जाता है । १. हस्तकर्म करना २. मैथुन का प्रतिसेवन करना ३. रात्रि भोजन करना ४. आधाकर्म आहार करना ५. सागारिक - शय्यातर का पिंड खाना ६. औद्देशिक, क्रीत तथा आहृत आहार खाना ७. बार-बार अशन आदि का प्रत्याख्यान कर उसे खाना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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