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श्रमण प्रतिक्रमण
८. छह महीनों में एक गण से दूसरे गण में संक्रमण करना
९. एक महीने में तीन उदकलेप ( नाभि-प्रमाण पानी वाली नदी आदि )
लगाना
१०. एक महीने में तीन मायास्थान (प्रच्छादन आदि) का सेवन करना
११. राजपिंड का भोग करना
१२. अभिमुखतापूर्वक - जानकर हिंसा करना
१३. अभिमुखतापूर्वक झूठ बोलना
१४. अभिमुखतापूर्वक अदत्तादान लेना
१५. अव्यवहित (बिना कुछ बिछाए ) पृथ्वी पर स्थान ( कायोत्सर्ग) या निषद्या
करना
१६. जानबूझकर जल स्निग्ध तथा सचित्त रज से संश्लिष्ट पृथ्वी पर स्थान या निषद्या करना
१७. सचित्त पृथ्वी, शिलापट्ट आदि पर स्थान या निषद्या करना
१८. जानबूझकर सचित्त कंद-मूल आदि का भोजन करना
१९. एक वर्ष में दस उदक- लेप लगाना
२०. एक वर्ष में दस मायास्थान का सेवन करना
२१. बार-बार सचित्त जल से लिप्त गृहस्थ के हाथों से अशन, पान आदि ग्रहण कर उनका भोग करना ।
१३. बाबीस परीषह (समवाओ, २२1१ )
परीष का सामान्य अर्थ है कष्ट । मुनि-जीवन में जिन कष्टों की अत्यधिक संभावना रहती है, उनका यहां उल्लेख है । ये बावीस प्रकार के हैं। उनको सहने के दो कारक हैं - मोक्षमार्ग से अविचलित होने के लिए तथा कर्म संचय की निर्जरा के लिए। उन परीषहों का विशद वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के दूसरे अध्ययन में विस्तार से हुआ है । वे बाबीस परीषह ये हैं१. क्षुधा परीषह १२. आक्रोश परीषह १३. वध परीषह
२. पिपासा परीषह
३. शीत परीषह
४. उष्ण परीषह
५. दंश-मशक परीषह
६.
अचेल परीषह
अरति परीषह
७.
८. स्त्री परीषह
९. चर्या परीषह
१०. निषीधिका परीषह ११. शय्या परीष
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१४. याचना परीषह
१५. अलाभ परीषह
१६. रोग परीषह
१७. तृणस्पर्श परीषह
१८. जल्ल परीषह १९. सत्कार-पुरस्कार परीषह २०. ज्ञान परीषह
२१. दर्शन परीषह २२. प्रज्ञा परीषह
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