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श्रमण प्रतिक्रमण
पन्द्रह
यत
किचित्
क्षमितुं
क्षमा करने के लिए। पञ्चदशानां दिवसानां
दिनों में पञ्चदशानां
पन्द्रह रात्रीणां
रात्रियों में जो
कुछ अप्रत्ययः
अविश्वास के कारण परप्रत्ययः
दूसरे के विश्वास के कारण भक्ते
भोजन पाने
पानी विनये
विनय वैयावृत्त्ये
सेवा आलापे
आलाप संलापे
संलाप उच्चासने
उच्च आसन समासने
सम आसन अन्तरभाषायां
बीच में बोलना उपरिभाषायां
बात को काटकर वोलना यत्
कुछ मम
मेरा विनयपरिहीनं
विनयहीन व्यवहार सूक्ष्म वा
सूक्ष्म अथवा बादरं वा
स्थल यूयं जानीथ
आप जानते हैं अहं न जानामि
मैं नहीं जानता तस्य
उससे सम्बन्धित मिथ्या
निष्फल हो मे
मेरा दुष्कृतम् ।
दुष्कृत । भावार्थ
हे क्षमाश्रमण ! मैं पाक्षिक क्षमायाचना करना चाहता हूं, इसलिए आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूं। इन पन्द्रह दिन-रात में अविश्वास या दूसरे
किंचित्
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