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आचरण और अनुपालन करता हूं ।
इस निर्बंध धर्म पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता हुआ, इसका आचरण और अनुपालना करता हुआ, इस निग्रंथ धर्म की आराधना के लिए अभ्युत्थित होता हूं, विराधना से विरत होता हूं ।
मैं असंयम, अब्रह्म, अकल्प, अज्ञान, अक्रिया, मिथ्यात्व अबोधि और अमार्ग का प्रत्याख्यान करता हूं तथा संयम, ब्रह्म, कल्प, ज्ञान, क्रिया, सम्यक्त्व, बोधि और मार्ग को स्वीकार करता हूं ।
अतिचार की स्मृति या अस्मृति, उसके प्रतिक्रमण या अप्रतिक्रमण से सम्बन्धित सब दैवसिक अतिचार का प्रतिक्रमण करता हूं ।
मैं श्रमण हूं, संयत और विरत हूं। मैंने अतीत के पापकर्मों की आलोचना की है और भविष्य में पापकर्मों का प्रत्याख्यान किया है । मैं निदान - मुक्त, दृष्टि- संपन्न और माया - मृषा का विवर्जन करने बाला हूं ।
अढ़ाई द्वीप - समुद्रों और पन्द्रह कर्म-भूमियों में रजोहरण, गोच्छक और पात्र को धारण करने बाले, पंचमहाव्रती, अठारह हजार शीलांग के अभ्यासी, अक्षत आचार और चरित्र वाले जितने साधु हैं, उन सबको सिर और मन को प्रणत कर, ललाट पर अञ्जलि टिका बन्दना करता हूं । १४. खामेमी सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे 1 मत्ती मे सव्वभूएस, वेरं मज्भ न केणई || एवमहं आलोइय निंदिय गरिहिय दुगंछिय सम्मं । तिविहेण पडिक्कतो वंदामि जिणे चउवीसं ॥
संस्कृत छाया
शब्दार्थ
क्षाम्यामि
सर्व जीवान्
सर्वे जीवाः
क्षमन्तां
माम् ।
मंत्री
मे
सर्वभूतेषु
वैरं
मम
न
केनचित् । एवं
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क्षमा करता हूं
समस्त जीवों को
सभी जीव
क्षमा करें
मुझको ।
श्रमण प्रतिक्रमण
मैत्री
मेरी
सभी प्राणियों के प्रति
वैर
मेरा
नहीं है
किसी के साथ |
इस प्रकार
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