Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 20
________________ पडिक्कमणं १. णाणाइयार-सुत्तं आगमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा—सुत्तागमे अत्थागमे तदुभयागमे । एयस्स सिरिनाणस्स जो मे अइआरो कओ तं आलोएमि। जं वाइद्धं वच्चामेलियं हीणक्खरं अच्चक्खरं पयहीणं विणयहीणं घोसहीणं जोगहीणं सुठ्ठदिन्नं दुठ्ठपडिच्छियं अकाले कओ सज्झाओ काले न कओ सज्झाओ असज्झाइए सज्झाइयं सज्झाइए न सज्झाइयं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । संस्कृत छाया शब्दार्थ आगमः आगम त्रिविधः तीन प्रकार का प्रज्ञप्तः कहा गया है, तद् यथा जैसेसूत्रागमः सूत्रागम अर्थागमः अर्थागम तदुभयागमः और सूत्रागम-अर्थागम । एतस्य इस श्रीज्ञानस्य ज्ञान के संबंध में यो जो मया अतिचारः कृतः आलोचयामि । यत ध्याविद्धं मैंने अतिचार किया हो उसकी आलोचना करता हूं। जैसेविपर्यस्त किया हो-सूत्रपाठ को आगे-पीछे किया हो मूल पाठ में अन्य पाठ का मिश्रण किया हो। व्यत्यामेलितं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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