________________
२२
संस्कृत छाया प्रतिक्रामामि
गोचरचर्यायां
भिक्षाचर्यायां
'उग्घाड' - कपाट - उग्घाडणाए'
श्वक- वत्सक दारक- सघट्टनायां
मण्डीप्राभृतिक्यां
बलिप्राभृतिक्यां
स्थापनाप्राभृतिक्यां
शंकिते
सहसाकारे
अनैषणायां
प्राणभोजने
बीजभोजने
हरितभोजने
पश्चात्काfमक्यां पुर: कार्मिक्यां
अदृष्टाहृते
संसृष्टाहृते
रजः संसृष्टाहृते
पारिशानिक्यां
पारिस्थापनिक्यां अवभाषण भिक्षायां
Jain Educationa International
श्रमण प्रतिक्रमण
शब्दार्थ
प्रतिक्रमण करता हूं गोचरचर्या
भिक्षाचर्या में
बंद कपाट को खोला हो,
कुत्ते, बछड़े और बच्चे को इधर-उधर किया हो,
पकाये हुए भोजन में से निकाले हुए प्रथम कवल की भिक्षा ली हो, देवपूजा के लिए तैयार किया हुआ भोजन लिया हो, स्थापित भोजन लिया हो,
शंकित आहार लिया हो,
बिना सोचे जल्दबाजी में लिया हो, बिना एषणा - पूछताछ किए लिया हो, प्राणयुक्त भोजन लिया हो, बीजयुक्त भोजन लिया हो, हरियाली (सचित बनस्पति) - युक्त भोजन लिया हो,
पश्चात् कर्म - युक्त भोजन लिया हो, पुरः कर्म युक्त भोजन लिया हो, बिना देखे तथा ऊपर से उतारकर लाई हुई वस्तु ली हो,
सचित पानी से स्पृष्ट लाई हुई वस्तु ली हो, सचित रजों से स्पृष्ट लाई हुई वस्तु ली हो,
भूमि पर गिराते- गिराते दी जाने वाली वस्तु ली हो,
परिष्ठापनयोग्य वस्तु ली हो, विशिष्ट द्रव्य को मांगकर लिया हो (तथा)
१. 'उघाड़' देशी शब्द है । इसका अर्थ है - ऐसा बंद कपाट जिसमें ताला या कूंटा न हो, जिसे साधारणतया खुला हुआ ही कहा जाता है और राजस्थानी भाषा में 'ओढाल्योडो' कहा जाता है ।
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org